"What happened to Chhatrapati Sambhaji Maharaj's wife Yesubai after his death?"
छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी येसुबाई का जीवन संघर्षपूर्ण रहा।
संभाजी महाराज को 1689 में औरंगजेब ने बंदी बनाकर निर्दयी तारीख से हत्या कर दी थी। उसके बाद, मुगलों ने उनकी पत्नी येसुबाई और पुत्र शाहू को भी कैद कर लिया।
येसुबाई का जीवन और संघर्ष:
1. मुगल कायद (1689 - 1707):
संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद, येसुबाई और उनके पुत्र शाहू को औरंगजेब ने 18 साल तक कैद में रखा।
उनको मुगल शिविर में ले जाया गया और उनकी कठिन निगरानी की गई।
2. शाहू की रिहाई और सत्ता संघर्ष (1707):
1707 में, औरंगजेब की मृत्यु के बाद, मुगल साम्राज्य में अशांति फैल गई।
बहादुर शाह ने शाहू को रिहा कर दिया, ताकी मराठों के बीच गृह युद्ध हो और वे कमज़ोर पड़ जाएं।
शाहू की रिहाई के बाद, उन्हें मराठा राज्य पर दावा किया, लेकिन उनकी चाची ताराबाई ने इसका विरोध किया।
3. येसुबाई की रिहाई (1719):
येसुबाई को 1719 में मुगल सम्राट फर्रुखसियर (1713-1719) के शासन काल में रिहा किया गया था।
उसके बाद, वे सतारा लौट आये और अपने पुत्र शाहू महाराज के साथ रहने लगे।
4. बाद का जीवन:
रिहाई के बाद, येसुबाई ने राजनीतिक मसलों में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं किया।
उन्हें अपना शेष जीवन अपने पुत्र शाहू महाराज का समर्थन करने और मराठा साम्राज्य को मजबूत बनाने में बिताया।
येसुबाई का जीवन: मराठा इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय
येसुबाई का जीवन मराठा इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उनकी कहानी सिर्फ संघर्ष की नहीं, बाल्की उनके धैर्य, बुद्धिमता, और अपने राज्य के प्रति उनकी अटल निष्ठा का भी प्रमाण है।
येसुबाई की राजनीतिक समाज
जब मुगलों ने संभाजी महाराज को पकड़ लिया, तब येसुबाई ने किले की सुरक्षा मजबूती की और मराठा सरदारों से मदद मांगी।
संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद, उन्हें मराठा राज्य को सुरक्षित रखने के लिए कै रणनीति बनाई गई।
उन्हें मराठा सेना और प्रशासन को एकजुट रखने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि मुगल उन्हें पूरी तरह से बर्बाद न कर सकें।
औरंगजेब ने येसुबाई और उनके पुत्र शाहू को कैद कर लिया, लेकिन उन्हें कभी हार नहीं मानी।
कहा जाता है कि मुगल दरबार में भी येसुबाई ने अपनी गरिमा बनाई राखी और मराठा परंपरा का पालन किया।
क़ैद के दौरन उन्हें शाहू को मराठा संस्कृति और राजनीति की शिक्षा दी, ताकि वे भविष्य में मराठा साम्राज्य को संभाल सकें।
मराठा सत्ता संघर्ष
जब शाहू महाराज रिहा हुए, तब मराठा साम्राज्य दो धड़ों में बट गया- एक ताराबाई (राजाराम महाराज की पत्नी) के समर्थकों का और दूसरा शाहू महाराज का।
येसुबाई ने शाहू का साथ दिया, लेकिन उनका मुखिया उद्देशय मराठा साम्राज्य को एकजुट रखना था।
उन्हें सिद्ध राजनीति में हस्तक्षेप नहीं किया गया, लेकिन साहू को परदे के पीछे से मार्गदर्शन देती रही।
येसुबाई का अंतिम जीवन
1719 में रिहा होने के बाद, वे सातारा में शांति से अपना जीवन बिताने लगी।
उनके बाद शाहू महाराज ने मराठा साम्राज्य को और विस्तार दिया और पेशवा व्यवस्था लागू की।
मराठा साम्राज्य को मजबूत करने में येसुबाई का प्रत्यक्ष योगदान बहुत महत्वपूर्ण रहा।
येसुबाई की विरासत
येसुबाई सिर्फ एक रानी नहीं थी—वे एक योद्धा, एक कुशल रानीतिकर, और एक महान मराठा नारी थी। कथिन परिस्थितियों में भी उन्हें अपना धैर्य बनाया रखा और अपने परिवार और राज्य की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास किया। उनकी कहानी मराठा इतिहास में आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी है।
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